Bhagwan Shiv Ki Mrityu Kaise Hui: भगवान शिव को मृत्यु लोक के देवता कहा जाता है जो कि जीवन और मौत से परे हैं और भगवान शिव खुद में ही एक आदि काल शक्ति है, जिन्होंने इस सृष्टि के रचयिता और पालनहार को बनाया है।
अर्थात भगवान विष्णु की उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा ही हुई है, ऐसा विष्णु पुराण और अन्य पुराणों और शास्त्रों ग्रंथों में में वर्णित है और भगवान विष्णु के नाभिक कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई है। ऐसा कहा जा सकता है कि भगवान शिव ने ही इन दोनों को प्रकट किया था।

इसलिए आज के अपने इस आर्टिकल में हम बात करेंगे भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई?। इसलिए अगर आप भी जानना चाहते है की भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई? तो यह आर्टिकल आपके लिए महत्वपूर्ण होने वाला है। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ना ताकी आपको इस विषय से संबधित किसी भी जानकारी के लिए कहीं और ना जाना पड़े।
भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई? सम्पूर्ण जानकारी | Bhagwan Shiv Ki Mrityu Kaise Hui
क्या भगवान शिव की उत्पत्ति हुई है?
शास्त्रों में कहा गया है की भगवान शिव की उत्पत्ति मनुष्य शरीर के द्वारा हुई ही नहीं है क्योंकि मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से बना है। जल, वायु, अग्नि, मिट्टी और आकाश और इन सब को मिलाकर मनुष्य का शरीर बना हुआ है। लेकिन इन पंच तत्वों को बनाने वाले खुद भगवान शिव हैं।
भगवान शिव को पृथ्वी का संहार करने वाला भी कहा गया है क्योंकि विष्णु को सृष्टि का पालनहार और ब्रह्मा जी को रचयिता कहा जाता है। इसी कारण से भगवान शिव को संहार करने वाला देवता कहा गया है क्योंकि जो पैदा करता है वही उसको मिटाता भी है। उसको ही संहार कहा जाता है।
जैसे जब – जब भी इस पृथ्वी पर राक्षसों का अतिक्रमण बढ़ गया, तब – तब भगवान शिव ने ही उनका संहार करके अर्थात उनका उद्धार करके उन्हें मुक्ती दी। भोले तो भोले हैं, जों सबकी मनोकामना भी पूरी करते हैं। इसीलिए भगवान शिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ, तो उनकी मृत्यु कैसे हो सकती है?
शिव पुराणों की कथाओं में भगवान शिव के बारे में क्या बताया गया है?
पुराणों के अनुसार कहा गया है की भगवान शिव की मृत्यु का आज तक कोई वर्णन नहीं मिला। भगवान शिव की मृत्यु का साक्ष्य ना तो शिव पुराण, स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण आदि पुराणों और वेदों में कहीं भी नहीं लिखा गया है, कि भगवान शिव की मृत्यु हुई होगी और ना ही कहीं पर भी इन शास्त्रों में भगवान शिव के जन्म का जिक्र किया गया है।
इसीलिए भगवान शिव को सदा शिव और मृत्युंजय नामों से पुकारा जाता है। भगवान शिव में ही प्रारंभ है और भगवान शिव में ही अंत – अनंत है। भगवान शिव से ही जीवन शुरू है और भगवान शिव में ही जीवन समाप्त।
अर्थात साधारण शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस तरह किसी शून्य का कोई भी बिंदू या आकार नहीं होता, उसी तरह भगवान शिव का भी कोई आकार नहीं। वह हर स्थान पर विख्यात है। इसीलिए भगवान शिव को अंनतकाल और महाकाल भी कहा जाता है, जो काल को भी हर ले।
मृत्युंजय का अर्थ क्या है?
मृत्युंजय शब्द की संस्कृत संधि विच्छेद में व्याख्या करें तो इस प्रकार है “मृत्युम् + जय = मृत्युंजय”
मृत्यु शब्द का मतलब है “मौत” और “जय” शब्द का मतलब है विजय। इसका मतलब यह हुआ कि जिसने मौत पर भी विजय प्राप्त कर ली हो उसे मृत्युंजय कहा जाता है। जैसे कि हमने आपको ऊपर लिखित बताया है कि भगवान शिव मौत से भी परे है और वह अजर – अमर है।
इसीलिए भगवान शिव को मृत्युंजय के नाम से जाना गया है। जो कोई भी जीव इस मृत्युलोक में मृत्युंजय के मूल मंत्र का नित्य जप करता है, उसकी कभी भी आकस्म या अचानक अकाल मृत्यु नहीं होती है, ऐसा शिव पुराण में कहा गया है।
मृत्युंजय का मूल मंत्र क्या है?
मृत्युंजय के मूल मंत्र को हमने नीचे विस्तार से बताने की कोशिश की है जिसे आप भी हमारे द्वारा समझ सकते है।
“ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम् उर्वा रुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् “
शिव पुराण में भगवान शिव की मृत्यु के बारे में क्या लिखा है?
शिव पुराण में भगवान शिव के मृत्यु के बारे में नहीं लिखा गया है क्योंकि शिव पुराण में सिर्फ भगवान शिव के द्वारा रची गई क्रिड़ाओं का वृतांत प्रस्तुत किया गया है। शिव पुराण में शिव की महिमा और शिव को कैसे पाया जाएं और शिव को प्रसन्न कैसे किया जाएं? साथ ही शिव स्तुति करने और उसके महत्व के बारे में ही बताया गया है।
शिव पुराण में 16 सोमवार के व्रतों का महत्व है। इसी पुराण में भगवान शिव के विवाह से लेकर उनके बच्चों तक सब का वर्णन है। इसी ग्रंथ को शिव पुराण के नाम से तीनों लोकों में जान गया है। भगवान शिव को विध्वंसक और पापों का नाश करने वाला देवों के देव महादेव भी कहा जाता है।
शिव पुराण की व्याख्या के आधार पर भगवान शिव को ” स्वयंभू” नाम से संबोधित किया गया है। स्वयंभू शब्द का मतलब है स्वयं से उत्पन्न हुआ अर्थात भगवान शिव अपने आप से ही प्रकट हुए।
भगवान शिव के अनुसार यह है मृत्यु के संकेत
मृत्यु शब्द सुनते ही हर जीव के मन में एक ही संशय उत्पन्न हो जाता है जबकि सब जीवों को पता है कि जिसका भी इस मृत्युलोक में जन्म हुआ है, उसकी मौत निश्चित है। फिर भी कोई भी जीव इस बात को मानने से इनकार करता रहा है कि वह मर नहीं सकता या कहें की वह मरना नहीं चाहता।
लेकिन हम कह सकते हैं कि मृत्यु ही सत्य है। इस बात को झुठलाया भी नहीं जा सकता। यह तथ्य शिव पुराण में समझाया गया है। शिव पुराण का अनुसरण करते हुए माता पार्वती जी ने भगवान शिव से एक प्रश्न पूछा की जब किसी जीव की मृत्यु होनी होती है या वह जीव मृत्यु के समीप द्वार पर हो, तो ऐसा कोई संकेत मिलता है कि वह जीव मरने वाला है।
इसका जवाब देते हुए भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती से कहा की “मृत्यु लोक में जन्मे हर जीव का मरण तय हैं”। यह कहते हुए भगवान शिव ने मृत्यु संकेतों को माता पार्वती को बताना आरम्भ किया। जिसको हमने नीचे आपको विस्तार से समझाने की कोशिश की है।
- भगवान शिव के मुख्य वाक्य के अनुसार जब किसी जीव का शरीर पीला, सफेद या लाल रंग का होना शुरू कर दे, तब इस बात की ओर संकेत करता है कि वह जीव मृत्यु द्वार के निकट है और उस जीव की मृत्यु छः महीने के अंदर होनी तय है।
- जल, तेल और दर्पण में किसी भी जीव को अपना काया चित्र दिखाई ना दे या वह जीव अपनी छाया बिंदू देखने में असहाय हो तो यह मृत्यु का एक इशारा होता है कि उस जीव की मृत्यु निकट है।
- जिस जीव की अवस्था यह दर्शाती है कि वो आयु के पड़ाव को पार कर चुका है, उस जीव को अपनी छाया नज़र नहीं आती और कुछ जीवों को बिना मस्तिष्क के छाया दिखाई प्रतीत होती है, जो कि एका एक डरावनी होती है। ऐसे जीव की मृत्यु के पड़ाव पर होते हैं।
- जब किसी जीव के हृदय में पीड़ा उत्पन्न होती है, जिस कारण से बायें बाजू और हाथ में लंबे समय तक दर्द महसूस होता है, तो यह चिन्ह इस ओर संकेतिक करता है कि वह जीव एक महीने के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो सकता है।
- जिस भी जीव को अगर यह एहसास होना शुरू हो जाए कि उसके मुंह पर स्पर्श, जिभा में स्वाद, दृष्टि में दोष, कान से सुनना और नाक से सुगंध आना बंद हो जाएं, तो वह जीव छः महीने के उपरांत जीवित नहीं रह पाऐगा।
- जब किसी प्राणी को सूर्य और चंद्र का प्रकाश और अग्नि की तपन कम प्रतीत हो तो समझ लीजिए कि वह प्राणी छह महीने में इस संसार को छोड़ कर चला जाएगा।
- जुबान में सूजन और दांतों में से पस का निकलना इस बात कि तरफ संकेत करता है कि प्राणी छह महीने ही जीवित रह पाएगा और उसके पास केवल छह महीने का ही समय बचा है।
- जिन प्राणियों को सुर्य, चन्द्र ओर धरती हर तरफ से लाल दिखाई दे या ऐसा महसूस हो रहा हो। इसका मतलब उस प्राणी या जीव की आने वाले छह महीने में मृत्यु हो जाएगी।
भगवान शिव के द्वारा पार्वती को दिए गए संकेतों के उपरांत भी महा पुराणों और वेदों आदि ग्रंथों में मृत्यु के बारे में ऐसा ही वर्णित है।
प्राचीन काल में भगवान शिव को अपनी कड़ी तपस्या से प्रसन्न कर दानवों और राक्षसों ने अमर रहने का वरदान पाया और मृत्यु पर विजय पाने की चेष्टा की थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया क्योंकि शिव पुराण कहती है कि जिस भी जीव ने मृत्यु लोक में जन्म लिया है, उसका मरण निश्चित है।
हाथों की लकीरों को देखकर भी यह पता लगाया जा सकता है कि जीवन रेखा कितनी है। अगर जीव या प्राणी की आयु रेखा छोटी हो तो वह भी मृत्यु की तरफ संकेत करती है। भगवान श्रीकृष्ण जी ने “भागवत् गीता” के सार में अर्जुन को यह बताते हुए समझाया कि मृत्यु का नाता केवल जीव के देह से है ना कि जीव की आत्मा से। आत्मा तो एक सूक्ष्म बिंदू है जोकि अजर अमर है और यही सूक्ष्म बिंदु आदि काल सदाशिव ब्रह्म है।
FAQ
बृजकिशोर बिंद ने कहा कि देवों के देव महादेव की जाति बिंद थी और इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि इसकी पुष्टि के लिए शिव पुराण भाग 2 अध्याय 36 पारा 4 में साफ-साफ उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव बिंद जाति के थे।
भगवान शिव की पहली पत्नी राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। इसी सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी थी।बाद में उन्होंने ही हिमवान और हेमावती के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया और फिर शिवजी से विवाह किया। उनकी तीसरी पत्नी काली, चौथी उमा और पांचवीं गंगा माता का नाम लिया जाता है।
भगवान शिव जी के कुल 7 पुत्र थे।
भगवान शंकर के पिता शिव स्वरूप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है। प्राकृतिक रूप से भगवान शंकर जी की माता दुर्गा और पिता सृष्टि रचयिता सदाशिव जी हैं यानी कि ब्रह्मा जी।
यदि भगवान शिव की उम्र की बात करें तो शिव जी की आयु विष्णु जी की आयु से 7 गुना होती है। इसमें शिव जी का एक दिन 1000 चतुर्युग का होता है और रात्रि भी 1000 चतुर्युग की होती है। मतलब की शिव जी की आयु 504000000 × 7 = 3528000000 (तीन अरब बावन करोड़ अस्सी लाख) चतुर्युग की होती है।
निष्कर्ष
हमने अपने इस लेख में आप सभी लोगों को भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई? सम्पूर्ण जानकारी ( Bhagwan Shiv Ki Mrityu Kaise Hui) के बारे में कंप्लीट जानकारी प्रदान की हुई है और हमें उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आप लोगों के लिए काफी जगह सहायक और उपयोगी साबित हुई होगी।
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