Guru Gorakhnath ki Mrityu Kaise Hui: आज के आर्टिकल में हम बात करेंगे महान चमत्कारिक और रहस्यमयी गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई? आज हम जानेंगे इन्ही से संबधित इनके जीवन के बारे में। अगर आप भी गुरु गोरखनाथ से संबधित उनके जीवन के बारे में जानकारियां हासिल करना चाहते है तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी महत्पूर्ण होने वाला है।

इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ना ताकी आपको भी महान चमत्कारिक और रहस्यमयी गुरु गोरखनाथ जी से संबधित उनके जीवन के विषयों को जानने के लिए कहीं और जाने की जरूरत ना पड़े।
गुरु गोरखनाथ का जीवनकाल और उनकी मृत्यु कैसे हुई? | Guru Gorakhnath ki Mrityu Kaise Hui
गुरु गोरखनाथ का जीवनकाल परिचय
भारतवर्ष की धरती महान् तपस्वियों और महाज्ञानी ऋषि मुनियों की रही है। उन ऋषि-मुनियों ने अपने तप और बुद्धि के बल पर भारत ही नहीं बल्कि पूरी सृष्टि पर अपने कर्मों के फल को चारों तरफ फैलाने का महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऋषि मुनियों के द्वारा ही दिए गए ज्ञान से आज हम सभी सही और गलत मार्ग चुनने का सामर्थ्य रखते हैं।
महान ऋषि मुनियों के द्वारा दिए गए दिव्य ज्ञान को आज भी ग्रंथ, काव्या, वेद, पुराणों में लिखी गयी है साथ ही रचनाएं भी प्रस्तुत है। सृष्टि पर ऐसे महापुरुष और ऋषि मुनि ने जन्म लिया है जो बचपन से ही दिव्य शक्तियां होने के कारण और कड़ी तपस्या करने के बाद बहुत प्रकार की सिद्धियां और शक्तियों का ज्ञान प्राप्त कर लेते थे। फिर उनका सदुपयोग भलाई के कामों में और धर्म रक्षात्मक कार्य में लगाते थे।
यह सिद्धियां इतनी प्रबल होती थी और अद्भुत चमत्कारी भी होती थी, कि किसी भी कार्य को करने में इनको क्षण भर का समय भी नहीं लगता था और कोई भी कठिन कार्य को सुलझाना इनका बाएं हाथ का खेल था।
इनके लिए इन्हे कोई भी परेशानी पैदा नहीं होती थी पर इन ऋषि मुनियों को इन सिद्धियां और शक्तियों को प्राप्त करने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता था, तब जाके इनको यह सिद्धियां प्राप्त होती थी। यह सिद्धियां और शक्तियां इतनी प्रबल होती थी कि ऋषि मुनि दूर दृष्टि तक देख पाते थे और शास्त्रों में ऐसा भी वर्णित है कि ऋषि मुनि इन सिद्धियों के कारण आज भी इनकी आत्मा जीवित हैं।
गोरखनाथ शब्द का अर्थ क्या है?
सृष्टि पर गौरक्षा नाथ के नाम से भी उनके भक्त श्री गुरु गोरखनाथ जी को जानते थे। गोरखनाथ शब्द की व्याख्या की जाए तो आप इस तरह समझ सकते हैं कि गाय का पालन पोषण और रखरखाव करने वाला। प्राचीन समय के लिखे हुए ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि गाय में 33 करोड़ देवी देवताओं का वास होता है और सनातन धर्म के अनुसार गाय पूजनीय मानी गई है।
गुरु गोरखनाथ जी की मृत्यु हुई थी या उन्होंने समाधि ली थी?
गुरु गोरखनाथ जी की मृत्यु हो ही नहीं सकती थी क्योकिं वो एक अवतरित महापुरुषों में से एक थे। आत्मलीन होकर उन्होंने देह को त्याग कर के समाधि ले ली थी। यह समझने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में स्थित ज्वाला जी देवी माता के दर्शन करते हुए गोरखनाथ जी ने वर्तमान राज्य उत्तर प्रदेश के जिला गोरखनाथ में भगवती राप्ती के किनारे क्षेत्र में घोर तपस्या करके वहीं पर अंतर्ध्यान होकर समाधि ले ली थी। आज उसी प्रसिद्ध जगह पर उत्तर प्रदेश पर “गोरखनाथ जी” का भव्य मंदिर बना हुआ है।
गुरु गोरखनाथ जी जन्म की कहानी क्या है?
गोरखनाथ जी ने किसी भी नारी के गर्भ से जन्म नहीं लिया था। ऐसा आपको पुराने शास्त्रों में लिखित मिल जाएगा। बल्कि उनका जन्म एक गोबर के ढेर से हुआ था। आगे जानने के लिए आपको नीचे लिखे गए लेख को पढ़ना होगा।
तेजवंत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ नाथ और गुरु गोरखनाथ। भगवान शिव को नाथ समुदाय के संस्थापक कहा गया है। नाथ समुदाय के गुरु दत्तात्रेय माने जाते हैं। श्री गुरु दत्तात्रेय के शिष्य मत्स्येंद्रनाथ थे जो अपने जीवन में नित्य धर्म – कर्म और प्रभु की भक्ति करते हुए भिक्षा मांग कर जीवन यापन कर रहे थे।
एक दिन की बात है गोरखनाथ के गुरु श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी किसी नगर में भिक्षा मांगने के लिए निकले थे। तभी वहां पर जाकर इन्होंने एक घर के बाहर से आवाज लगाई भिक्षा दो। तभी उस घर से एक नारी निकली उसने साधु को भिक्षा दी। साधु ने भिक्षा लेने के बाद उस नारी को सौभाग्यवती और पुत्रवधू का आशीर्वाद दिया।
यह सुनकर वह नारी रोने लग पड़ी। फिर उस साधु ने उस नारी से उसके रोने का कारण पूछा। तब उस नारी ने अपने जीवन की पूरी कहानी उसे सुनाई और साधु को उस नारी ने बताया कि मेरी कोई औलाद नहीं है। शादी को इतने वर्ष हो गए है लेकिन मेरी गोद आज तक सुनी है।
नारी की यह रोते हुए आप बीती सुनकर साधु ने उस नारी को एक विभूती दी और कहा कि इसे तुम खा लेना और यह कहकर वह साधू वहां से चल दिए। विभूति को लेकर वह नारी असमंजस में पड़ गई कि मैं इसको खाऊं या ना खाऊं। अगर मैं खा लेती हूं तो मुझे कुछ हो ना जाए।
इसी सोच के कारण उसने इस विभूति को ना खाते हुए पास पड़े गाय के गोबर में जाकर डाल दीया। और दूध को उस गोबर के ढेर पर डालकर सींचती रही क्योंकि वह नारी उस साधु (मत्स्येंद्रनाथ योगी) की शक्तियों को जानती नहीं थी। फिर 12 साल बाद वही साधु आऐ जिनका नाम मत्स्येन्द्रनाथ था।
उन्होंने आकर उस नारी से पूछा कि तुम्हारा बालक कहां है? तब नारी कुछ ना बोल पाई। साधु समझ गया कि इसने जरूर कुछ गलत किया है। उसने पूछा कि तुमने विभूति कहां पर डाली। तब उस नारी ने पास पड़े गाय के गोबर के ढेर की तरफ इशारा किया।
साधु उस गोबर के ढेर पास गए और वहां पर आवाज लगाई वत्स बाहर आओ। उस गोवर के ढेर से एकदम एक बालक प्रकट हुआ। वह बालक देखने में बहुत ही सुंदर और आकर्षक मन मोहक वाला था। उस बालक को मत्स्येन्द्रनाथ अपने साथ ले आए। गाय द्वारा निकले गोबर से की जाने वाली रक्षा से उत्पन्न हुए बालक का नाम गौरक्षा नाथ पड़ा।
यही वह बालक था जो कि गोरखनाथ के रूप में प्रसिद्ध हुए। नाथ योग की शुरुआत गोरखनाथ ने ही की थी। आज हम जितने भी योगासन करते हैं जिनमें प्रमुख कुण्डलिनी, प्रणायाम और मुद्रा प्रकार के योग आसन इन्हीं के द्वारा दिए गए हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ जी ने हर युग में अवतार लिया था।
त्रेता युग में गुरु गोरखनाथ जी के जन्म की कहानी
त्रेता युग में भी गोरखनाथ जी का अवतरण हुआ था। ऐसा प्राचीन काल के समय से माना जाता है कि भगवान श्री राम जी के राज्य अभिषेक में समस्त ऋषि मुनि, विद्वानों और ब्राह्मणों को निमंत्रण भेजा गया था। उनमें से एक निमंत्रण श्री गोरखनाथ जी को भी भेजा गया था और वह इस राज्य अभिषेक में सम्मिलित हुए थे।
द्वापर युग में गुरु गोरखनाथ जी के जन्म की कहानी
द्वापर युग में गुरु गोरखनाथ जी इस धरती पर अवतार के रूप में आए थे, ऐसा सनातन धर्म ग्रंथों में व्याख्यान किया जाता है। वर्तमान में स्थित राज्य गुजरात जिला जूनागढ़ में गोरखमढ़ी नामक स्थान पर इन्होंने तप किया था। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी जी का शुभ विवाह संपूर्ण हुआ था। उनके विवाह में शामिल होने के लिए गोरखनाथ जी भी आए हुए थे।
कलयुग में गुरु गोरखनाथ जी के जन्म की कहानी
कलयुग में एक बाप्पा रावल नाम का राजकुमार हुआ करता था। एक दिन भ्रमण करते हुए राजकुमार घने जंगल के अंदर तक चला गया, तब उसने वहां पर तपस्या में लीन एक साधु को देखा और वह साधु और कोई नहीं बल्कि गोरखनाथ ही थे।
बाप्पा रावल गुरु गोरखनाथ जी के मस्तिक के तेज और तप ध्यान से आकर्षित होकर उनके रूके रहने का निर्णय करके, उनकी प्रतिदिन सद्भाव से सेवा करने लगे। फिर एक दिन गुरु गोरखनाथ जी ने आंखें खोली तो बाप्पा रावल को अपने सामने पाया।
वह उनकी इस सद्भाव सेवा से अति प्रसन्न हुए और उनको वरदान के रूप में एक तलवार भेंट की। उसी तलवार के बल पर आगे चलकर बाप्पा रावल ने मुगल शासकों को घुटनों के बल लाकर खड़ा कर दिया था और चित्तौड़ राज्य की नींव रखी थी।
रोट उत्सव और गोरखनाथ जी के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक अनचाहे तथ्य
ऐसा माना जाता है कि गोरखनाथ जी भ्रमण करते – करते नेपाल में पहुंच गए थे और वहां पर एक गुफा में उन्होंने रुक कर तप किया, जिसके कारण इस स्थल का नाम गोरखा पड़ा। इसी गुफा में उनके पद्य चिन्ह का प्रमाण मिलता है। इसी स्थान पर एक गोरखनाथ जी की मूर्ति भी रखी गई है।
हर साल इसी स्थान पर गोरखनाथ जी की याद में बैसाखी पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। इससे नेपाल के लोग “रोट उत्सव” के नाम से मनाते हैं। नेपाल के राजा नरेंद्र देव ने भी गुरु गोरखनाथ जी से दीक्षा प्राप्त करके उनके शिष्य बन गए थे और राजपाट को छोड़कर तप साधना में लीन रहने लग गये थे।
गोरखनाथ जी की उत्पत्ति को लेकर असमंजस आज भी बना हुआ है। कई इतिहासकारों का मानना है कि भगवान श्री राम जी और भगवान श्री कृष्ण जी की तरह श्री गुरु गोरखनाथ जी भी एक काल्पनिक कहानी के पात्र है और कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनका काल नौवीं शताब्दी के बीच में था। ऐसा हम नहीं कह रहे है बल्कि इतिहासकारों का मनना है की इतिहास की अलग – अलग पुस्तकों में इसका वर्णित किया गया है।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला में स्थित शहतलाई नामक जगह पर बालक नाथ जी का मंदिर है, इस जगह पर गुरु गोरखनाथ जी ने आकर तप किया था और बाबा बालक नाथ जी की परीक्षा ली और उनको आशीर्वाद देकर वहां से चल दिए।
गुरु गोरखनाथ जी भारत की धरती पर बहुत से स्थानों का भ्रमण करते हुए अंत में गोरखनाथ जी ने उत्तर प्रदेश के जिल गोरखपुर में समाधि लीन हो गये थे और आज इस जगह पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है,जिस मंदिर पर हजारों लाखों की तादात में भक्तों और श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी गोरखनाथ जी के धाम पर आकर माथा टेकता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
FAQ
आपकी जानकारी के लिए हम बता दे की गुरु गोरखनाथ जी के जन्म के बारे में आज तक संशय बना हुआ है लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है की गुरु गोरखनाथ जी का जन्म 845 ईस्वी की 13वीं सदी में हुआ था।
गोरखपुर में ही गुरु गोरखनाथ समाधि स्थल है।
वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन हठ योग के गुरु गुरुगोरखनाथ का दिन होता है।
गुरु गोरखनाथ का वास्तविक नाम “गोरक्षनाथ” है।
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार गुरु गोरखनाथ शिव भगवान के अवतार माने जाते है।
निष्कर्ष
हमने अपने आज के इस महत्वपूर्ण लेख में आप सभी लोगों को गुरु गोरखनाथ की मृत्यु कैसे हुई?( Guru Gorakhnath ki Mrityu Kaise Hui)के बारे में कंपनी जानकारी प्रदान की हुई है। अगर आप लोगों को गुरु गोरखनाथ के ऊपर दी गई यह जानकारी पसंद आई हो या फिर आप के लिए जरा सी भी उपयोगी साबित हुई हो तो आप इसे अपने दोस्तों के साथ और अपने सभी सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करना ना भूले।
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