पूजा कब नहीं करनी चाहिए? पूजा का सही समय

Pooja Kab Nahi Karni Chahiye: हमारे समाज में देवी देवताओं की पूजा करना हमारे दिनचर्या का एक हिस्सा है, संपूर्ण भारत में सभी लोग पूजा पाठ करते हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार पूजा करने से हमारे मन को शांति मिलती है। हमारा मन पूजा के समय ईश्वर को देखता है तथा ज्ञान की प्राप्ति होती हैं।‌ सदियों से ही पूजा की जाती आ रही है।

Pooja Kab Nahi Karni Chahiye
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आज भी घर तथा मंदिरों में पूजा की जाती हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि पूजा करने का सही समय कौन सा है?, किस समय पूजा करनी चाहिए और किस समय पूजा नहीं करनी चाहिए? तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको पूरी जानकारी विस्तार से बताएंगे।

पूजा कब नहीं करनी चाहिए? पूजा का सही समय क्या है | Pooja Kab Nahi Karni Chahiye

पूजा क्यों करते हैं?

हमारे समाज में सदियों-सदियों से पूजा पाठ करने की पद्धति और प्रक्रिया चली आ रही हैं। हम अपने मन की संतुष्टि के लिए, ईश्वर की प्राप्ति के लिए, ईश्वर को खुश करने के लिए पूजा करते हैं। पूजा करने से हमें इस बात का अनुभव होता है कि हमने ईश्वर को खुश कर दिया है, ईश्वर हमारे साथ हैं।

हमें अपने सबसे प्राचीनतम इतिहास से भी पूजा के बारे में जानकारी मिलती है। हमारे समाज में हर तरह के लोग सदियों सदियों से पूजा करते आ रहे हैं और यही पूजा पद्धति आज भी जारी है। लोग अपनी श्रद्धा से ईश्वर को खुश करने हेतु पूजा करते हैं।

पूजा कब करनी चाहिए?

पूजा करना अच्छी बात है लेकिन पूजा करने का सही समय क्या है? यह पता होना उससे भी अच्छी बात है। क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा करना का एक निश्चित समय होता है। इस दौरान भगवान पूजा के लिए तैयार रहते हैं जबकि दूसरे समय वह अपने कार्य और विश्राम किया करते हैं। इसीलिए सदियों सदियों से हमारे समाज में पूजा करने को लेकर एक विशेष समय निर्धारित किया गया है।

सुबह पूजा करने का समय

पूजा करने का कोई टाइम टेबल तो नहीं है, लेकिन सुबह जल्दी उठकर सुबह के समय सूर्योदय के बाद तक पूजा कर सकते हैं। इस दौरान सुबह यानी 5:00 बजे से लेकर सूर्योदय के बाद यानी 8:00 बजे तक आमतौर पर हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार पूजा का सबसे उचित समय है। इस दौरान पूजा करने से ईश्वर खुश होते हैं। 8:00 बजे के बाद भी आप पूजा कर सकते हैं, लेकिन 8:00 बजे से पहले पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

इस समय को देव बेला या भगवान की बेला भी कहते हैं यानी भगवान का समय, इसके अलावा कई जगह पर और कहीं लोगों द्वारा हमें दोपहर के समय भी पूजा करते देखने को मिला है। वे किसी खास समय पर और खास मौके पर पूजा करते हैं, जैसे किसी ने कोई नया वाहन लिया है या कोई इमारत बनाने हेतु नींव रख रहे हैं तो वे मुहूर्त के अनुसार दोपहर के समय ही पूजा करते हैं। परंतु ईश्वर की पूजा करने का सुबह का समय प्राय 5:00 से 8:00 बजे तक का है।

शाम को पूजा करने का समय

शाम के समय ईश्वर की पूजा करने का भी कोई निश्चित समय फिक्स नहीं है, परंतु शाम को सूरज ढलने के साथ ही ईश्वर की पूजा का समय शुरू हो जाता है। सूर्य ढलने से पहले से भारत के कोने-कोने में मंदिरों और घरों में पूजा करना आरंभ हो जाता है। शाम के समय भी तीन से चार घंटों के बीच सूर्यास्त होने से पहले से लेकर सूर्यास्त के बाद अंधेरा होने तक पूजा कर सकते हैं।

उसके बाद पूजा करना अशुभ माना जाता है क्योंकि रात होने के बाद भूतों का समय शुरू हो जाता है। ऐसा धर्म शास्त्रों में कहा गया है। शाम के समय सूर्यास्त होने से पहले लेकर सूर्यास्त होने के कुछ समय बाद तक ईश्वर की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में भी यही जानकारी प्रदान की गई है, इसे आप को भलीभांति जान लेना चाहिए।

पूजा कब नहीं करनी चाहिए?

मनुष्य द्वारा पुरातन काल से ही पूजा अर्चना की पद्धति चली आ रही है, इसमें इंसान स्वयं को ईश्वर से जोड़ने हेतु पूजा करते है। अब तक हमने आपको पूजा करने का सही समय बता दिया है, इसमें सुबह का समय और शाम का समय भी शामिल है। लेकिन अब हम यह बता देते हैं कि पूजा कब नहीं करनी चाहिए?, पूजा करने का कौन सा समय उचित नहीं है।

हमारे धर्म शास्त्र पूजा करने का सही समय बताते हैं, उसी धर्म शास्त्र में मनुष्य द्वारा पूजा नहीं करने के उस समय को भी उल्लेखित किया गया है, जिस समय पूजा नहीं करनी चाहिए। तो आइए जानते हैं कौन सा समय पूजा के लिए वर्जित है।

पूजा नहीं करने का समय

धर्म शास्त्रों के अनुसार दोपहर को 12:00 बजे से लेकर 4:00 बजे तक पूजा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शास्त्र कहते हैं दोपहर को 12:00 से 4:00 के बीच ईश्वर विश्राम कर रहे होते हैं। इसी बीच भूतों का समय शुरू हो जाता है। इस कारण आपको दिन के समय दोपहर को 12 से लेकर 4:00 बजे तक पूजा नहीं करनी चाहिए।

अक्सर आपने देखा होगा कि यह दोपहर के समय मंदिरों के कपाट बंद कर दी जाते हैं, जबकि सुबह शाम सभी मंदिरों के कपाट और दरवाजे खुले होते हैं। भजन बजाए जाते हैं, लोगों का मंदिर आना जाना रहता है। परंतु दोपहर के समय ऐसा कुछ भी नहीं होता है।

पूजा करने का वर्जित समय दिन के अंदर हमने देख लिया है तो अब हम यह देख लेते हैं कि ऐसा कौन सा समय है, जिस समय काल में मनुष्य को पूजा नहीं करनी चाहिए। जैसे सूतक का समय, ग्रहण का समय, जन्म-मृत्यु का समय, स्त्रियों के मासिक धर्म का समय इत्यादि के बारे में भी जान लेते हैं।

पूजा कब नहीं करनी चाहिए? (Pooja Kab Nahi Karni Chahiye)

सूतक का समय

धर्म शास्त्रों के अनुसार जिस भी घर-परिवार ने संतान की प्राप्ति होती है, उस घर परिवार के लोग पूजा नहीं कर सकते। क्योंकि उस समय को “सूतक” का समय कहा जाता है। सूतक के समय में हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा करना वर्जित माना जाता है। बच्चे के जन्म के 10 दिनों तक उस घर परिवार के लोग पूजा अर्चना नहीं कर सकते। बच्चे के जन्म के 10 दिन बाद वे पूजा अर्चना कर सकते हैं, उस दिन उस घर में सूतक समाप्त हो जाता है।

पाठक का समय

जिस भी घर परिवार में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती हैं तो उस घर परिवार के लोग भी पूजा-अर्चना नहीं कर सकते क्योंकि उस समय “पाठक” लग जाता है। बच्चे के जन्म के समय सूतक लगता है, जबकि इंसान की मृत्यु के समय पाठक लगता है।

पाठक लगने के 12 दिनों बाद तक पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। इंसान की मृत्यु के 12 दिन पूरे होने के बाद ही पाठक खत्म होता है, जिसके बाद पूजा कर सकते हैं।

ग्रहण का समय

धर्म शास्त्र के अनुसार जब सूर्य ग्रहण लगना होता है, उसके ठीक 12 घंटे पहले ही सूतक लग जाता है। सूर्य ग्रहण के समय ईश्वर की पूजा अर्चना करना वर्जित हैं। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले यानी एक दिन पहले ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और सूर्य ग्रहण वाले दिन मंदिर के कपाट बंद रखते हैं। सूर्य ग्रहण समाप्त होने के बाद ही शुद्धिकरण करते है।

मंदिर के कपाट खोल कर सभी लोगों द्वारा नहा धोकर पूजा अर्चना की जाती हैं। सूर्य ग्रहण समाप्त होने के बाद सभी लोग पूरे घर को धोते हैं, पानी की सभी मटकियां व घड़े इत्यादि धोते हैं। सूर्य ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिर तथा देवी देवताओं के स्थान को भी धोकर पवित्र किया जाता है, उसके बाद ही पूजा-अर्चना का काम होता है।

मासिक धर्म का समय

धर्म शास्त्रों के अनुसार जब भी मनुष्य अपवित्र होता है, उसी समय ईश्वर की पूजा करना वर्जित है। जैसे मल त्याग करना, उल्टी करना इत्यादि। इसी प्रकार जब मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों अपवित्र होती है, उस स्थिति में पूजा पाठ नहीं करना चाहिए। मासिक धर्म के दौरान पूजा करना वर्जित है। मासिक धर्म से निकलने के बाद ही स्नान करके स्त्रियां पूजा कर सकती हैं।

FAQ

पूजा कब नहीं करनी चाहिए?

सूतक का समय, ग्रहण का समय, जन्म-मृत्यु का समय, स्त्रियों के मासिक धर्म का समय आदि के समय पूजा नहीं करनी चाहिए।

सुबह कितने बजे पूजा करनी चाहिए?

सुबह 5:00 बजे से लेकर सूर्योदय के बाद यानी 8:00 बजे तक आमतौर पर हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार पूजा का सबसे उचित समय है। 8:00 बजे के बाद भी आप पूजा कर सकते हैं, लेकिन 8:00 बजे से पहले पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

शाम को कितने बजे पूजा करनी चाहिए?

शाम के समय भी तीन से चार घंटों के बीच सूर्यास्त होने से पहले से लेकर सूर्यास्त के बाद अंधेरा होने तक पूजा कर सकते हैं।

निष्कर्ष

हमारे समाज में धर्म और श्रद्धा के आधार पर सदियों सदियों से पूजा पद्धति चली आ रही है, लेकिन इसमें सही समय का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए आज के इस आर्टिकल में हमने आपको पूजा करने का सही समय विस्तार से बताया है यानी कि पूजा कब करनी चाहिए, सुबह कितने बजे उठकर पूजा करनी चाहिए और पूजा कब नहीं करनी चाहिए।

उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल काफी ज्यादा पसंद आया होगा। यदि आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई प्रश्न है तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं। जल्द से जल्द हम आपके कमेंट का उत्तर देंगे।

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