सती प्रथा का अंत कब और किसने किया था?

Sati Pratha ka Ant Kisne Kiya : सती प्रथा हमारे भारतीय समाज के लिए एक कलंक के समान की प्रथा थी, जिसमें खास करके महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा था। जिस महिला के पति की मृत्यु हो जाती थी, तो दूसरे लोग उसकी पत्नी को उसके पति की चिता पर जिंदा जला देते थे, जिससे कि उसके बच्चे भी अनाथ हो जाते थे और उसका घर परिवार सब बर्बाद हो जाता था।

Sati Pratha ka Ant Kisne Kiya
Image: Sati Pratha ka Ant Kisne Kiya

सती प्रथा जैसी कुरीतियों का दमन करने के लिए कई सालों तक लंबी लड़ाई लड़ी गई तब जाकर यह सती प्रथा का अंत हुआ। तो आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे कि सती प्रथा का अंत कैसे हुआ और सती प्रथा का अंत किसने किया और सती प्रथा का प्रारंभ कैसे हुआ?

सती प्रथा का अंत कब और किसने किया था? | Sati Pratha ka Ant Kisne Kiya

सती प्रथा क्या थी?

सती प्रथा में महिला के पति की मृत्यु के बाद महिला को उसके पति के चिता पर जिंदा जला दिया जाता था। जिसके बाद महिलाएं बहुत ही लाचार होकर अपने प्राणों की रक्षा भी नहीं कर पाती थी और अंत में वह अपना प्राण त्याग दी थी। महिलाओं के लिए यह उस समय में बहुत ही दर्दनाक मौत कहलाती थी।

सती प्रथा की शुरुआत किसने की थी?

सती प्रथा की शुरुआत को लेकर कई सारे बातें बताए गए हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सती प्रथा का प्रारंभ माता सती से हुआ है। माता सती ने अपने पिता दक्ष के द्वारा अपने पति भगवान भोलेनाथ का अपमान सुनकर काफी गुस्से में भर गई थी। माता सती अपने पति भगवान भोलेनाथ का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकी।

उन्होंने अपने पिता दक्ष द्वारा यज्ञ का आयोजन जो करवाया था, उसी यज्ञ में कूदकर अपना प्राण त्याग दी लेकिन सती प्रथा में पत्नियों को पति के मृत्यु के बाद जानबूझ कर पत्नियों को पति के मृत्यु के बाद जानबूझकर आग में डाला जाता है और पत्नी भी मजबूरी में आकर अपने प्राण त्याग देती है।

जबकि माता सती ने अपनी मर्जी से उस यज्ञ के आग में कूदी थी और माता सती के पति भगवान भोलेनाथ उस समय जीवित थे, तो यह कहीं से भी सती प्रथा से संबंधित नहीं है।

तो जो लोग भी सती प्रथा को माता सती से जोड़ते हैं वह बिल्कुल भी गलत है। दूसरी बात यह है कि भारतीय इतिहास के गुप्त काल में 510 ईसा पूर्व में सती प्रथा का प्रमाण मिलता है।

ऐसा माना जाता है कि उस वक्त गुप्त काल में महाराजा भानु प्रताप के परिवार के एक सदस्य जिसका नाम गोपराज था उसकी युद्ध में मृत्यु हो जाती है। तो उसकी पत्नी अपने पति की मृत्यु की खबर सुनकर अत्यधिक दुखी हो जाती है और वे अपने प्राण त्याग देती है।

लेकिन यह बात भी सती प्रथा से नहीं मिलती है। सती प्रथा में महिलाओं को जबरदस्ती आग में जलने के लिए झोंक दिया जाता था। उसे अपनी मजबूरी से अपने प्राण त्यागने पड़ते थे लेकिन अधर्म को देखते हुए भी कुछ भी नहीं करते थे।

सती प्रथा सिर्फ महिलाओं के ऊपर अन्याय था। सती प्रथा एक कलंक के समान था, जिसे किसी भी व्यक्ति ने रोकने का बिल्कुल भी प्रयास नहीं किया। लेकिन 19वीं सदी में इससती प्रथा को रोकने का बदलाव समाज में रहने लगा और 19 वी सदी में ही सती प्रथा का अंत हुआ।

सती प्रथा का अंत किसने किया था

सती प्रथा का अंत एक देवता समान व्यक्ति ने किया था जिसका नाम था राजा राममोहन राय। राजा राममोहन राय ने अपने कई कठिन परिश्रम करके सती प्रथा को बंद करने का काफी प्रयास किया था।

उनके प्रयास का ही यह फल था कि 4 दिसंबर साल 1829 को लॉर्ड विलियम बेंटिक के साथ मिलकर पूरे भारत में सती प्रथा का अंत राजा राममोहन राय के अथाक प्रयास के द्वारा हुआ था। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के अंत के लिए और साथ ही साथ अन्य गलत प्रथा के लिए और उनसे होने वाले नुकसान ओं के लिए इन सभी खास विषयों पर उन्होंने कई पुस्तकें लिखी जो कि हिंदी अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में थी।

इन खास विषयों पर पुस्तक लिखकर राजा राममोहन राय ने इन पुस्तकों को पीढ़ी में बांटा ताकि लोगों को यह जानकारी मिल सके कि इस प्रथा से कितनी हानि होती है और इसके निवारण के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं।

राजा राममोहन राय एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने समाज में फैले गई कुरीतियों को दूर किया है। राजा राममोहन राय ने ना केवल सती प्रथा का अंत किया बल्कि उन्होंने पुनर्विवाह, विधवा विवाह, इन सभी को सही साबित किया और समाज में जागरूकता फैलाया।

ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसी कुरीतियों के विरुद्ध समाज में जागरूकता फैलाई। जिसके फलस्वरूप समाज में लोग जागरुक होकर सती प्रथा के आंदोलन में शामिल हुए और इस कुरीति सती प्रथा को अंत करने के लिए अंग्रेजी सरकार को कानून पारित करना पड़ा।

राजा राममोहन राय कौन थे?

भारत को पुनर्जागरण करने और आधुनिक भारत की शुरुआत का श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है। राजा राममोहन राय के पिता का नाम रामाकांत था और उनकी माता का नाम तारिणी देवी था।

राजा राममोहन राय ने भारत में सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है। राजा राममोहन राय एक दूरदर्शी विचारक थे। उन्होंने स्वतंत्रता का आंदोलन दिया और पत्रकारिता के माध्यम से लोगों तक अपने बातों कैसे पहुंचाया जा सकता है,
इसके बारे में भी एक नई दृष्टिकोण दी।

राजा राममोहन राय के पत्रकारिता आंदोलन के कारण ही सती प्रथा को कानूनन अपराध साबित किया गया। जो भी इस अमानवीय प्रथा को करता है उसे दंडनीय अपराध दिया जाए ऐसा कानून बनाया गया।

राजा राममोहन राय एक साहसी व्यक्ति थे जिनके प्राण संकट होने के बावजूद भी उन्होंने सती प्रथा का अंत करके ही दम लिया।
राजा राममोहन राय एक महान व्यक्ति थे जिनकी तारीफ के लिए शब्द भी कम पड़ते हैं।

उन्होंने अपने जीवन काल में कई ऐसे कार्य किए जो कि उस समय के लिए अपने आप में ही कई गुना बड़ी बात है। उन्होंने समाज में फैले कई कुरीतियों को समाज दूर कराया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा, बाल विवाह, दहेज प्रथा इन सभी प्रथा को दूर किया।

महिलाओं को शिक्षा का अधिकार हो, विधवा विवाह हो, अंग्रेजी भाषा की ज्ञान हो, इन सभी चीजों पर जोर दिया और समाज को एक नई दिशा दिखाई और इस प्रकार उन्होंने पूरे संसार में भारत को एक गौरव शील भारत साबित किया।

राजा राममोहन राय की पढाई

राजा राममोहन राय बचपन से ही काफी ज्ञानी और साहसी थे। उन्होंने केवल 15 वर्ष की आयु में ही फारसी, अरबी, संस्कृत और बंगाली भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने वेद, उपनिषद, हिंदू दर्शन का गहन से अध्ययन किया और अंत में उन्होंने वेदांत को अपना जीवन का मुख्य आधार माना।

सन 1830 में राजा राममोहन राय इंग्लैंड गए थे और वहां जाकर राजा राममोहन राय ने भारत को शिक्षित होने का प्रमाण दिया था।
भारत की संस्कृति की महानता को इंग्लैंड में उजागर करने वाले राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे। उसके बाद स्वामी विवेकानंद गए थे, जिन्होंने अपने भारत का का मान सम्मानका मान-सम्मान केवल 2 शब्दों में ही पूरे विश्व के आगे रख दिया।

राजा राममोहन राय की मृत्यु

सन 1833 में इंग्लैंड में ही राजा राममोहन राय ने अपनी अंतिम सांस ली थी। आश्चर्य की बात है कि वहां पर उनकी समाधि बनाई गई है। इंग्लैंड के एक कॉलेज ग्रीन में राजा राममोहन राय की एक मूर्ति भी लगाई गई है। यह बात ही अपने आप में गौरव शील महसूस करवाती है कि हमारे भारत देश में ऐसे महान व्यक्ति जन्म लेते हैं जो कि दूसरे देश में जाकर भी अपना मान सम्मान प्राप्त कर पाते हैं।

रविंद्र नाथ टैगोर जी राजा राजा राममोहन राय को आधुनिक युग के सूत्रपात मानते हैं। राजा राममोहन राय ने राजनीतिक, सामाजिक सुधार, धार्मिक सुधार, शिक्षा सुधार, लोक प्रशासन जैसे क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने आपको सती प्रथा का अंत कब और किसने किया था? ( Sati Pratha ka Ant Kisne Kiya) के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी है।

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